मंगलवार, 16 नवंबर 2010

नागर विमानन मंत्री सीएम इब्राहिम ने कहा है कि टाटा ग्रुप के चेयरमैन रतन टाटा बताएं कि उनसे किस मंत्री ने 15 करोड़ रुपये की रिश्‍वत मांगी थी। अगर टाटा नाम का खुलासा नहीं करते हैं तो वह कर खुदकशी लेंगे।अब मै तो ईश्वर से यही प्रार्थना करूंगा कि टाटा चुप ही रहें। आप इस बारे में क्या सोचते है? कॊई डेड लाइन न देने के बारे में भी गम्भीर चिन्तन अपेक्षित है।
सोचिये और हमें भी बताइये।

शनिवार, 13 नवंबर 2010

जो लोग किसी सॊशल नेट्वर्किंग साईट पर है वे भले अभिव्यक्ति की आजादी का आनन्द उठा लें। भारत में वास्तविक रुपसे ऐसा नहीं है। यदि आपको सुख से रहना है तो सोनिया माता सोनिया माता कहना है नहीं तो मार खाने के लिये तैयार रहें? यह कौन सी राजनैतिक विचारधारा है?
इसपर भी बात खत्म हो जाये तो भला हो कोई अपनी भूल के लियेक्षमा मांगें तो भी उसका सर्वनाश राज सत्ता के द्वारा सुनिश्चित।

शनिवार, 18 सितंबर 2010

Posted by Picasa
Posted by Picasa

प्रचार

आज कल भारत में कश्मीर पर कम कामनवेल्थ पर अधिक चर्चा हो रही है क्या यह वास्तविक समस्या से भटकाव नहीं है। मुझे तो लगता है की कामनवेल्थ के भ्रष्टाचार का प्रचार कश्मीर की अहम समस्या से देश का ध्यान बटानें/ हटाने का सफल प्रयास है। आप का क्या विचार है? केन्द्र द्वारा दहकते कश्मीर को प्रमुखता मिलनी चाहिये या दरकते कामनवेल्...थ को ?

बच्चो का खिलौना

चालीस के बाबा ने ओमर अब्दूल्ल्ला को बच्चा बताया< कश्मीर का खिलौना उसके लिये जायज ठहराया, इसलिये कि उसे भारत के भाग्य से खेलने का अधिकार मिले। आखिर राहुल बाबा बालिग तो होने वाले नहीं है। आपका क्या विचार है?

सोमवार, 24 अगस्त 2009

काशी हिन्दू विश्वविद्यालय का सेकुलराइजेशन : महामना के स्वप्न को ध्वस्त करने की साजिश

आज विभाग में मुझ से मिलने प्रो. दीनबन्धु पाण्डेय जी आये थे। प्रोफ़ेसर पाण्डेय जी काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के कला इतिहास विभाग के अवकाश प्राप्त अध्यक्ष तथा आचार्य हैं। सेवानिवृत्ति के पश्चात् भी शिक्षा और शोध की विविध गतिविधियों में सक्रिय हैं। साधारणतया पाण्डेय जी प्रसन्नचित्त ही मिलते हैं पर उस दिन वे कुछ दुःखी तथा कुछ उदास लग रहे थे। सज्जन अपना क्रोध भी नहीं छुपा पाते। इसलिये पाण्डेय जी की खिन्न मनोदशा पढ़ने में मुझे समय न लगा और मै ने उनसे इसका कारण पूछा तो उन्होने मेरे समक्ष दो पन्ने रख दिये। पन्नों को पढ़ कर मैं स्तब्ध रह गया। ये पन्ने काशी हिन्दू विश्वविद्यालय प्रशासन द्वारा विश्वविद्यालय के उद्देश्यों में हेरफेर से सम्बन्धित था।

काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के उद्देश्य महामना मालवीय जी ने स्वयं तय किये थे पर अग्रेजों को उस पर आपत्ति नहीं थी, भारत सरकार को भी उस पर आपत्ति नहीं रही है लेकिन हिन्दू विशवविद्यालय का वर्तमान प्रशासन महामना के द्वारा तय किये गये उद्देश्यों से सहमत नहीं है और शायद इसीलिये उसने विश्वविद्यालय के उद्देश्यों में परिवर्तन कर दिया है। अब यह महामना के सपनों का विश्वविद्यालय नहीं रहा । महामना ने इसकी स्थापना का प्रथम उद्देश्यअखिल जगत् की सर्वसाधारण जनता के एवं मुख्यतः हिन्दुओं के लाभार्थ हिन्दूशास्त्र तथा संस्कृत साहित्य की शिक्षा का प्रचार करना, जिससे प्राचीन भारत की संस्कृति और विचार की रक्षा हो सके तथा प्राचीन भारत की सभ्यता में जो कुछ गौरवपूर्ण था उसका निदर्शन होरखा था। {to promote the Hindu Shastras and of Sanskrit literature as means of preserving and popularising for the benefits of Hindus in particular and of the world at large in general, the best thought and culture of Hindus and all that was good and great.} यह उद्धरण काशी हिन्दू विश्वविद्यालय की पत्रिका प्रज्ञा के स्वर्ण जयन्ती विशेषांक से लिया गया है।

काशी हिन्दू विश्वविद्यालय ने महामना द्वारा प्रथम क्रमांक पर निर्दिष्ट इस उद्देश्य सेअखिल जगत् की सर्वसाधारण जनता के लिये मुख्यतः हिन्दुओं के लाभार्थ” [for the benefit of Hindus in particular and of the world at large in general ] को हटा दिया है। ( देखें BHU site- bhu.ac.in )

यह कोई मानव त्रुटि नहीं है, गलती नहीं है, सोची समझी साजिश है इस महान विश्वविद्यालय की पहचान मिटाने का कुत्सित प्रयास है। महामना के नेतृत्त्व में जिन लोगों ने अपना सब कुछ समर्पित उन सब की आस्था तथा समर्पण के साथ धोखा है।

इस वाक्यांश को हटाना संभवतया उस पुरानी साजिश का नवीनीकरण है जो इस विश्वविद्यालय के नाम से हिन्दू शब्द हटाने के लिये दशकों पूर्व भी रची गयी थी। तब महामना द्वारा लिखित उद्देश्य के इन्ही शब्दों ने हिन्दू शब्द को मिटने से रोका था। हां उस काल खण्ड में हिन्दू विश्वविद्यालय सहित समस्त काशी में जबरदस्त आन्दोलन हुआ और कुत्सित साजिश ध्वस्त हुई थी पर आज जब विश्वविद्यालय के मूल उद्देश्य पर ही चोट हुई है विश्वविद्यालय में कोई प्रतिक्रिया सुनाई नहीं दे रही है, काशी में भी कोई कोहराम नहीं मचा है। यही कारण है कि प्रो. दीनबन्धु पाण्डेय जैसे चन्द संवेदनशील लोग क्रुद्ध तथा दुःखी हैं।

इस मुद्दे पर सभी राष्ट्रीय सोच वाले चिन्तकों को आगे आना होगा। यह छोटा विषय नहीं है। बल्कि एक ऐसे विश्वविद्यालय की पहचान से जुड़ा हुआ है जो नालन्दा तक्षशिला एवं विक्रम शिला की परम्परा का समकालीन प्रतिमान है जिसके स्नातकों ने हिन्दू धर्म तथा भारतीय संस्कृति की कीर्ति पताका सम्पूर्ण विश्व में लहराई है। इस लिये काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के हर नूतन पुरातन छात्र, स्नातक का दायित्त्व है कि इसका प्रतिरोध करे तथा महामना द्वारा स्थापित इस सर्व विद्या की राजधानी का चिर् पुराण चिर् नवीन उद्देश्य रक्षित हो सके।

प्रो. दीनबन्धु पाण्डेय जैसे कुछ लोग सक्रियता के साथ इसका प्रतिरोध कर रहे हैं किन्तु इनकी संख्या मुट्ठी भर ही है इसलिये प्रतिरोध की यह आवाज अनसुनी है। इस हेतु हम सब को सामने आना होगा सबल प्रतिरोध करना होगा। ध्यान रहे आज देश के दो बडे केन्द्रीय विश्वविद्यालयों में दो नये तरह के कार्य हो रहें हैं। जहां एक ओर हिन्दू विश्वविद्यालय से हिनू पहचान समाप्त करने की साजिश चलरही है वहीं अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय की पांच शाखायें देश के विभिन्न क्षेत्रो के मुस्लिम बहुल इलाक़ों में खोली जा रही हैं यह सच्चर कमेटी के बाद नया कुत्सित प्रयास है। इन सब को आज समग्रता में देखना होगा। इन सभी देश विरोधी कृत्यों पर एक साथ प्रहार करना होगा।